उसने अपने ओठों के पास गुलाब रखकर मुझे इतराती नजरों से देखा और कहा, "माफी नहीं मिलेगी क्या? ...अभी भी नाराज हो। माफ नहीं करोगे तो जाओगे कहा? तुम्हारा असली गुलाब तो मैं ही हूँ। तुम सममुच गुस्से में बड़े खूबसूरत लग रहे थे। तुम तो कहते थे कि मैं डरपोक नहीं हूँ। लेकिन पुलिस को देखते ही पसीने छूटने लगे थे तुम्हारे। लगता है ब्रेक वाले झटके से बड़ा मेरा वाला झटका था।" मैंने झिझकते हुए कहा, "हाँ, ये झटका जो तुमने अभी-अभी मुझे दिया है उसे मैं जिंदगी भर नहीं भूल सकूँगा। तुम्हें समझना वाकई मेरे बस की बात नहीं है। एकदम तिलस्म हो तिलस्म। बकलोली।" धाकड़ कहाँ चुप रहने वाली थी, उसका उत्तर तैयार था। "मैं भी इस ठंड भरी रात को कभी नहीं भूल पाऊँगी। पहले अपने चेहरे के पसीने को पोछो। तुम्हें दिसंबर की कड़क ठंड में भी पसीना निकलवा दिया मैंने। तो जनाब ये है वूमेन पावर धाकड़ की पावर, समझे " फिर हम दोनों गले लग कर जोर-जोर से हँसने लगे। मैंने धाकड़ से कहा, "चलो जल्दी करो वर्ना तुम्हारी DDLJ छूट जाएगी। तुम फिर मुझे कोसोगी।" मैंने बाइक स्टार्ट की और मैं जब तक उसे बैठने के लिए कहता वो लपक कर मेरी बाइक पर आसन जमा चुकी थी। इस बार वह चिपक कर मेरे साथ बाइक पर बैठी थी। बाइक रफ्तार पकड़
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